Book Review: गोदान (Godan)

Date - 08/16/2020

विषय (Themes): मनोविज्ञान, सामाजिक समस्याएं, पारिवारिक समस्याएं, गरीबी और अमीरी, अंधविश्वास, पति-पत्नी, समय के साथ बदलती नैतिक दिशा

इन सब में जो सबसे अधिक रोचक है वह है कि किस प्रकार एक इंसान का मन ऐसी भिन्न-भिन्न सामाजिक संस्थाएं (कुछ जो बनी हुई है कुछ जो हर वक्त बनती बिखरती रहती है) में से गुजर के किस प्रकार उनको समझता है और उनको ना मानते हुए भी उनके साथ रहने के लिए मजबूर हो जाता है|

यदि उनकी पूरी समीक्षा करने की कोशिश की जाए तो क्या पता कितने अन्य गोदाम जैसी पुस्तकें लिखी जा सकती है| मनुष्य का ह्रदय कई बार सही और गलत में फर्क करते हुए भी उनका पालन नहीं कर पाता| अपने स्वभाव की जटिलता के कारण उसका दम घुटता जाता है|

यदि थोड़े से शब्दों में बताने का प्रयास करूं तो यह उपन्यास होरी नाम के एक किसान के परिवार की कहानी है| होरी और उसकी बीवी धनिया गरीब परंतु संवेदनशील और सच्चाई से रहने वाले लोग हैं| धनिया का स्वभाव होरी के विपरीत है| जहां होरी पंचायत के निर्णय का पालन करना धर्म समझता है, वही धनिया अन्याय के प्रति लड़ने का साहस रखती है| धनिया के स्वभाव में मां की ममता भी है और वही रानी लक्ष्मीबाई जैसे विद्रोह करने की क्षमता भी है|

यह किताब पूंजीवाद अर्थात capitalism के शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से पर्दा उठाने का प्रयास करती है| पूंजीवाद जहां एक ओर गरीबों पर जुल्म करता है, उसी तरह उसका दुष्प्रभाव कैसे अमीरों पर पड़ता है| उसका भी व्यावहारिक चित्रण किया गया है| जमीदारों द्वारा किए गए जुल्मों का संदेश होरी और धनिया के जीवन के माध्यम से बताया गया है|

यह किताब स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारों पर रोशनी डालती है| पितृसत्ता का भाव अनेक बार दर्शाया गया है| जाति के भेदभाव, विधवाओं के प्रति भेदभाव, दहेज जैसी कुप्रथा का भी जिक्र किया गया है| जहां आज की TV/mainstream-media स्त्री को स्त्री का सबसे बड़ा दुश्मन बनाने की कोशिश करती है, गोदान में ऐसे कई किस्से है जिसमें इसके बिल्कुल विपरीत बताया गया है| एक स्त्री, सामाजिक अंधविश्वासों को और अपने अहम को किसी अन्य स्त्री की मदद करने के लिए पूरे संसार से लड़ जाती है|

फेमिनिज्म(Feminism) पर यह किताब काफी समीक्षा करती है| फेमिनिज्म के साथ मातृत्व(मातृत्व भाव की चर्चा) के वाद विवाद का भी उल्लेख है|

लेखन शैली: इसकी गति में कोई कमी नहीं है|हर पेज पर कुछ ना कुछ जरूरी घटना घटती है| इसमें parallel story lines है,और ऐसे कई किरदार हैं जो कभी मिलते नहीं| इस किताब को अधिकतर मनोवैज्ञानिक शैली में लिखा गया है| संतुलित दृष्टिकोण बताने का प्रयास किया गया है|

निष्कर्ष (Conclusion):

उपन्यास भारत में बदलती स्थिति को जो 20वीं सदी में बदलती दुनिया के सामने रख सके बताती है आज जब भारत 21वीं सदी से गुजर रहा है इस किताब का पढ़ना और भी जरूरी हो जाता है

Footnotes

  1. गोदान - किताब